राजनीतिक पार्टियों के लिए बड़ा सबक हैं चुनाव नतीजे
पांच राज्यों (उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखण्ड, गोवा तथा मणिपुर) में हुए विधानसभा चुनावों में जहां भाजपा चार राज्यों में दोबारा सरकार बनाने जा रही है,
पांच राज्यों (उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखण्ड, गोवा तथा मणिपुर) में हुए विधानसभा चुनावों में जहां भाजपा चार राज्यों
में दोबारा सरकार बनाने जा रही है, वहीं पंजाब में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी का जादू मतदाताओं के
सिर चढ़कर बोला। भले ही उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश में आम आदमी पार्टी का जादू नहीं चला। इन चुनाव नतीजों
का आकलन करें तो कांग्रेस, बसपा जैसे विपक्षी दलों को मतदाताओं ने कड़ा संदेश दिया है।
उत्तर प्रदेश में कभी अपने बूते लगातार पांच साल पूर्ण बहुमत की सरकार चलाने वाली बहुजन समाज पार्टी का
अस्तित्व प्रदेश की राजनीति से करीब-करीब खत्म हो गया है, वहीं इन चुनावों में सबसे बड़ा खामियाजा अगर किसी
को भुगतना पड़ा है तो वो है कांग्रेस पार्टी, जिसके समक्ष अस्तित्व बनाए रखने की बड़ी चुनौती है।
यह तय है कि
अब पांच विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस की करारी हार के बाद पार्टी के भीतर गांधी परिवार के प्रति विरोध बढ़ेगा
और कांग्रेस के अंदर बगावत के सुर पहले के मुकाबले ज्यादा तेज होंगे। इसका स्पष्ट संकेत चुनावी नतीजों पर
टिप्पणी करते हुए जी-23 के नेता मनीष तिवारी के उस बयान से भी लगाया जा सकता है,
जिसमें उन्होंने कहा है
कि यह राहुल गांधी से ही पूछा जाना चाहिए कि कांग्रेस की ऐसी दुर्दशा क्यों हुई? माना जा रहा है कि आने वाले
दिनों में कांग्रेस की इस दुर्गति का असर महाराष्ट्र की राजनीति में भी देखने को मिल सकता है।
उत्तर प्रदेश में पिछली बार के मुकाबले भाजपा गठबंधन को भले 50 के करीब सीटों का नुकसान हुआ लेकिन
भाजपा की उत्तर प्रदेश सहित चार राज्यों में धमाकेदार जीत ने देश की राजनीति में आने वाले दिनों में कई
महत्वपूर्ण बदलावों के संकेत दे दिए हैं। उम्मीदों से परे भाजपा को मिली इस बड़ी चुनावी जीत के बाद देश में
तमाम विपक्षी पार्टियों के लिए भाजपा से निबटना अब और भी बड़ी चुनौती होगी। वहीं इस जीत ने पहले से काफी
मजबूत माने जाते रहे ‘मोदी ब्रांड’ को और मजबूत कर दिया है। भाजपा के खिलाफ भले चुनाव में तमाम बड़े मुद्दे
थे और कुछ जगहों पर सत्ता विरोधी लहर भी दिखाई दे रही थी लेकिन नरेन्द्र मोदी की राजनीतिक सूझबूझ और
रणनीति के चलते उनके जादू के समक्ष सब बेअसर साबित हुए।
हालांकि अकेले होने के बावजूद अखिलेश यादव ने जाटों, अल्पसंख्यकों और अति पिछड़ों के बीच अच्छा तालमेल
बनाया था और उनकी प्रत्येक चुनावी सभा में भीड़ उमड़ी। लेकिन नतीजों ने स्पष्ट कर दिया कि चुनावों में जुटती
भीड़ किसी की जीत की गारंटी नहीं हो सकती।
चुनाव परिणामों से स्पष्ट है कि अपनी चुनावी रणनीतियों की
बदौलत तमाम मुद्दों के बावजूद भाजपा बड़ी आसानी से रिकॉर्ड बहुमत के साथ दोबारा उत्तर प्रदेश में अपनी
सरकार बना रही है।
भाजपा के बारे में यह विख्यात हो चुका है कि वह किसी भी चुनाव को जीतने के लिए अपनी चुनावी रणनीति बहुत
पहले बना लेती है। वैसे भाजपा के पास चेहरे के अलावा संसाधन, संगठित कार्यकर्ताओं की मजबूत ताकत और
आनुषंगिक संगठनों का सहयोग चुनावों में सोने पे सुहागा साबित हुआ है।
चुनाव से ठीक पहले उत्तर प्रदेश में तीन
कद्दावर मंत्रियों और करीब दर्जन भर विधायकों का विद्रोह भाजपा के लिए परेशानी का कारण बना लेकिन
आलाकमान ने चुनावी वैतरणी पार करने के लिए जिस तरह के समीकरण साधे, उससे विपक्ष के मंसूबों पर आसानी
से पानी फिर गया।
किसान सम्मान निधि, प्रधानमंत्री आवास योजना, नि:शुल्क गैस कनैक्शन, आयुष्मान भारत
योजना के अलावा पिछले दो वर्षों से हर वर्ग के गरीबों को वितरित किए जा रहे नि:शुल्क राशन जैसी योजनाओं ने
महंगाई, बेरोजगारी जैसे मुद्दों को पीछे छोड़ दिया।
भाजपा नेता स्वयं यह स्वीकारने से गुरेज नहीं कर रहे कि मुफ्त राशन वितरण योजना पार्टी के लिए गेमचेंजर
साबित हुई है। भाजपा में इन चुनावों में उत्तर प्रदेश तथा उत्तराखण्ड जैसे राज्यों में जातियों की राजनीति के
तिलिस्म को तोड़ने में भी सफलता हासिल की है और भाजपा की प्रचण्ड जीत ने यह तय कर दिया है कि इन
राज्यों में अब जातिगत राजनीति की जगह नहीं है।