मध्य प्रदेश के दिल की धड़कन है मांडू
जिसने माण्डू नहीं देखा, उसने मध्यप्रदेश में देखा क्या? इसलिए भारत का दिल देखने निकलो तो माण्डव जाना न भूलिएगा। बादशाह अकबर हो या जहांगीर, सबको यह ठिया पसंद आया है। अबुल फजल तो सम्मोहित होकर कह गया था कि माण्डू पारस पत्थर की देन है।
जिसने माण्डू नहीं देखा, उसने मध्यप्रदेश में देखा क्या? इसलिए भारत का दिल देखने निकलो तो
माण्डव जाना न भूलिएगा। बादशाह अकबर हो या जहांगीर, सबको यह ठिया पसंद आया है। अबुल
फजल तो सम्मोहित होकर कह गया था कि माण्डू पारस पत्थर की देन है। माण्डू प्रकृति की गोद में
खूब दुलार पा रहा है।
ऐसा लगता है कि वर्षा ऋतु तो माण्डू का सोलह श्रंगार करने के लिए ही यहां
आती है। बारिश में तो यह अल्हड़ नवयौवन की तरह अंगड़ाई लेता नजर आता है। यहां आकर
आपका दिल भी आशिक मिजाज हो ही जाएगा। रानी रूपमति के महल से दिखने वाला नैसर्गिक
सौंदर्य आपको प्रेम सिखा ही देगा।
जहाज महल पर खड़े होकर आप असीम सुकून की अनुभूति करेंगे। हिन्डोला महल में आपका मन
डोले बिना नहीं रहेगा। होशंगशाह का मकबरा मन को मोह लेगा और ताजमहल की याद दिलाएगा।
आल्हा-ऊदल की कथाएं रोमांच बढ़ा देंगी, आपकी भुजाओं की मछलियां बाहर आने को मचल उठेंगी।
ईको प्वाइंट पर खड़े होकर जब आप जोर से अपना नाम पुकारेंगे तो लगेगा कि दुनिया आपको सुन
रही है। अद्भुत है माण्डू। रानी रूपमति और बाज बहादुर की खूबसूरत मोहब्बत की तरह माण्डू भी
बेहद हसीन है।
मालवा के परमार राजाओं के बसाए माण्डू को देखने के लिए अपने मित्र मनोज पटेल और गजेन्द्र
सिंह अवास्या के साथ जाना हुआ। सुबह करीब 8 बजे राजेन्द्र नगर, इंदौर से कार से रवाना हुए और
करीब दो घंटे में 100 किलोमीटर दूर स्थित माण्डू पहुंच गए। विंध्याचल की पहाड़ी पर करीब 2000
फीट की ऊंचाई पर स्थित माण्डू दुर्ग में प्रवेश से पहले एक गहरी खाई कांकडा खो है। थोड़ी देर यहां
फोटो सेशन हुआ। इसके बाद अपनी समृद्धि, अपने सौंदर्य और रूपमति-बाज बहादुर के प्रेम के लिए
मशहूर माण्डू के परकोटे में आलमगीरी और भंगी दरवाजे से प्रवेश किया। माण्डू दुर्ग का विस्तार बहुत
अधिक है। इसके अलग-अलग हिस्सों में स्थित ऐतिहासिक इमारतें, भवन, धार्मिक स्थल और तालाब-
बावड़ी किसी बड़े मैदान में बिखरे पड़े नायाब मोतियों, हीरे, जवाहरातों की तरह हैं। आधे दिन में सब
कीमती मोतियों को निहारना मुमकिन नहीं था। इसलिए सबसे पहले हम किले पर बसाहट के बीच से
कच्चे-पक्के रास्ते से होते हुए तारापुर दरवाजे पर पहुंचे। तारापुर दरवाजा माण्डू दुर्ग का एक छोर है।
रास्ते में ‘माण्डू की इमली‘ के पेड़ देखे। इसका स्वाद और आकार सामान्य इमली से अलग है। यह
लगभग गोलाकार होती है।
आप जब माण्डू जाएं तो ‘माण्डू की इमली‘ जरूर चखें। मालवा अंचल में
इसे ‘खुरासिनी इमली‘ भी कहा जाता है। खुरासिनी इमली के पेड़ भी बरबस ही आपको अपनी ओर
खींचते हैं। इनका तना काफी मोटा होता है। असल में ये पेड़ भारतीय मूल के नहीं हैं। सुल्तान
होशंगशाह ने अफ्रीका से खुरासिनी इमली का बीज मंगाया था। अफ्रीका में इन्हें ‘बाओबाब‘ के नाम से
जाना जाता है। माण्डू के अनुकूल वातावरण पाकर यहां ये खूब फल रहे हैं। माण्डू के सीताफल और
रेत ककड़ी भी खास हैं।
तारापुर दरवाजे पर प्राकृतिक छटा का आनंद लेने के बाद हम लोग रानी रूपमति के महल पहुंच गए।
अक्टूबर का महीना था। थोड़ी तीखी धूप तो थी। इसलिए हम चाह रहे थे कि कहीं से भी बादल घिर
आएं, हल्की बारिश हो जाए तो माण्डू की अंगड़ाई का लुत्फ इत्मिनान से ले सकेंगे। कहते हैं न कि
तुम जिस चीज को दिल से चाहो, तुम्हें उससे मिलाने में पूरी कायनात जुट जाती है। हुआ भी यही।
कायनात खुद हाजिर हो गई हमारी ख्वाहिश पूरी करने के लिए। माण्डू आए थे तो दूर-दूर तक कहीं
भी बादलों का नामोनिशान नहीं था लेकिन जैसे ही हल्की बारिश में उसका सौंदर्य देखने की हूक मन
में उठी तो बादल भी घिर आए और बारिश भी हो गई। रानी रूपमति के महल में ठण्डी हवाएं संगीत
सुनाने लगीं। महल की ऊपरी मंजिल में दो मण्डप हैं। बाज बहादुर यहां रूपमती से संगीत सुना करता
था। वह रानी रूपमती के रूप के साथ-साथ उसके संगीत और नृत्य पर मुग्ध था। दोनों ही एक-दूजे
से निश्छल प्रेम करते थे। बाजबहादुर और रूपमती की प्रेमकथाएं आज भी मालवा के लोकगीतों में
गूंजती हैं। कहते हैं रानी रूपमती मां नर्मदा के दर्शन किए बिना अन्न ग्रहण नहीं करती थीं। इसलिए
बाज बहादुर ने माण्डू में सबसे ऊंचे स्थान पर रूपमती महल का निर्माण कराया था। रानी रूपमती
यहां से नित्य नर्मदा के दर्शन करती थीं। दूसरे मण्डप से रानी बाज बहादुर के महल को भी निहारती
थीं। रानी रूपमती और बाज बहादुर की प्रेमकथा माण्डू की स्थायी और विशेष पहचान बन गई है।