मांस की दुकानों में कुक्कुट पक्षियों को मारने के खिलाफ याचिका पर गुजरात सरकार को अदालत का नोटिस
अहमदाबाद, 03 जनवरी (गुजरात उच्च न्यायालय ने मांस की दुकानों में कुक्कुट पक्षियों की आपूर्ति पर रोक लगाने की मांग करने वाली एक जनहित याचिका पर मंगलवार को राज्य सरकार को नोटिस जारी किया।
अहमदाबाद, 03 जनवरी ( गुजरात उच्च न्यायालय ने मांस की दुकानों में कुक्कुट पक्षियों
की आपूर्ति पर रोक लगाने की मांग करने वाली एक जनहित याचिका पर मंगलवार को राज्य सरकार
को नोटिस जारी किया। याचिका में कहा गया है कि इन पक्षियों को बूचड़खाने भेजने के बजाय मांस
की दुकानों में मारा जा रहा है।
अदालत ने कहा कि यह कहना तो अतिशयोक्ति होगा कि मटन की दुकान में मुर्गे-मुर्गियों को नहीं
मारा जाना चाहिए।
इसने यह भी पूछा कि क्या मुर्गे-मुर्गियों को जानवर माना जा सकता है।
मुख्य न्यायाधीश अरविंद कुमार और न्यायमूर्ति आशुतोष शास्त्री की पीठ ने राज्य सरकार, पशुपालन
निदेशक, खाद्य एवं औषधि प्रशासन (एफडीए) के आयुक्त और नगर निकाय प्रशासन आयुक्त को
नोटिस जारी किया तथा मामले को आगे होने वाली सुनवाई तक के लिए टाल दिया।
अदालत ने याचिका दायर करने वाले गैर सरकारी संगठनों-एनिमल वेल्फेयर फाउंडेशन और अहिंसा
महासंघ से पूछा कि क्या कुक्कुट पक्षियों को ‘जानवर’ माना जाना चाहिए और क्या उन्हें मांस की
दुकान पर लाने से पहले बूचड़खाने में भेजने की जरूरत है।
पीठ ने पूछा, ‘‘… क्या मुर्गी को जानवर माना जा सकता है? चिकन के मामले में, आप कैसे भेद कर
सकते हैं कि अच्छा चिकन क्या है और बुरा चिकन क्या है?’’
याचिकाकर्ता के वकील निसर्ग मेहता ने पशु क्रूरता निवारण (वधशाला) नियमावली के नियम 3 का
हवाला दिया,
जिसमें कहा गया है कि लाइसेंस प्राप्त बूचड़खाने को छोड़कर ‘जानवरों’ का वध अन्यत्र
नहीं किया जाना चाहिए।
अदालत ने जब यह पूछा कि ‘क्या मुर्गी को जानवर माना जा सकता है’, वकील ने पशु क्रूरता
निवारण अधिनियम की धारा 2 (ए) पर प्रकाश डाला, जो जानवर शब्द को ‘मनुष्य के अलावा किसी
भी जीवित प्राणी’ के रूप में परिभाषित करती है।
उन्होंने खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 के प्रावधानों का भी हवाला दिया, जिनमें कहा
गया है
कि मांस की दुकानों के भीतर किसी भी जीवित जानवर को ले जाने की अनुमति नहीं दी जा
सकती।
मुख्य न्यायाधीश कुमार ने कहा कि उस मानक के हिसाब से तो मछली को भी बूचड़खाने में ले
जाया जाना चाहिए, क्योंकि उन्हें भी दुकान में ताजा लाया जाता है।
अदालत ने प्रतिवादियों को नोटिस जारी करते हुए कहा, ‘यह कहना अतिशयोक्ति भरा होगा कि मटन
की दुकान में चिकन नहीं काटा जाना चाहिए।’
याचिकाकर्ताओं के वकील ने तर्क दिया कि सवाल उठता है कि क्या मुर्गे-मुर्गियों को अमानवीय तरीके
से काटा जाना चाहिए,
जबकि ऐसे प्रावधान हैं, जो कहते हैं कि मारने से पहले जानवर को बेहोश
किया जाना चाहिए।
वकील ने कहा, ‘उन्हें अन्य जानवरों के सामने जीवित अवस्था में मारा जा रहा है। वास्तव में, खाद्य
सुरक्षा और मानक अधिनियम के नियमन के तहत प्रावधान हैं, जो कहते हैं कि किसी भी जीवित
जानवर को मांस की दुकान के परिसर के भीतर ले जाने की अनुमति नहीं दी जाएगी।’
उन्होंने कहा, ‘ऐसे में जानवर को दुकान में ही कैसे मारा जा सकता है?’