शिव महापुराण में बताई गई 12 ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति की कथा
धमतरी, 10 अप्रैल (। ग्राम जोरातराई अ में श्री शिव महापुराण कथा में कथावाचक सर्वेश्वरानन्द सरस्वती चित्रकूट धाम ने 12 ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति के बारे में बताया।
धमतरी, 10 अप्रैल ( ग्राम जोरातराई अ में श्री शिव महापुराण कथा में कथावाचक
सर्वेश्वरानन्द सरस्वती चित्रकूट धाम ने 12 ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति के बारे में बताया। उन्होंने एक
प्रसंग में बताया कि ब्रह्मा जी और विष्णु भगवान में बहस छिड़ गई कि कौन सर्वश्रेष्ठ है।
दोनों ही अपने आप को सर्वश्रेष्ठ बताने लगे और इस समस्या का हल निकालने के लिए भगवान
शंकर एक प्रकाश स्तंभ के रूप में प्रकट हुए। भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा जी से जब इस
प्रकाश स्तंभ का कोई भी एक सिरा ढूंढने को कहा गया तो भगवान विष्णु ऊपर की ओर और
ब्रह्माजी नीचे की ओर गए परंतु दोनों ही इस कार्य में असफल रहे। बाद में शिवजी ने इस प्रकाश
स्तंभ को पृथ्वी पर गिरा दिया जिसे आज आप और हम ज्योतिर्लिंग के नाम से पुकारते हैं। गुजरात
के सौराष्ट्र में स्थित सोमेश्वर या सोमनाथ ज्योतिर्लिंग पृथ्वी पर प्रकट हुआ सबसे पहला ज्योतिर्लिंग
है। पुराणों के अनुसार यहां पर स्वयं चंद्रमा ने अपनी चमक वापस पाने के लिए भगवान शंकर की
कठोर तपस्या की थी, तभी से इसका नाम सोमनाथ पड़ गया था। आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले में
श्रीशैल नाम के पर्वतों (जिन्हें हम दक्षिण के कैलाश के नाम से जानते हैं) पर मल्लिकार्जुन
ज्योतिर्लिंग है। ऐसा प्रचलित है कि यहां के ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से ही मनुष्य के सभी पाप
नष्ट हो जाते हैं। कथावाचक ने आगे बताया कि धर्म शास्त्रों की माने तो इन 12 स्थानों पर भगवान
शंकर स्वयं विराजमान हैं। भगवान शिव का नाम लेने से ही सारे कष्ट और पाप मिट जाते हैं। मोक्ष
प्राप्ति के द्वार खुल जाते हैं। पुराणों में यह भी कहा गया है कि यदि आप किन्ही कारणों से इन 12
ज्योतिर्लिंगों के दर्शन करने ना जा पा रहे हों तो सुबह शुद्ध होकर इनके नाम मात्र ले लेने से ही
आपके सारे कष्ट और पाप मिट जाएंगे। इनकी पूजा से मनुष्य को मानव जीवन में सभी प्रकार के
सुख प्राप्त होते हैं और अंत में मोक्ष प्राप्ति के द्वार खुल जाते हैं।