बिसरख के शिव मंदिर में उमड़ी भक्तों की भीड़

नोएडा, 15 जुलाई ग्रेटर नोएडा के बिसरख गांव स्थित प्राचीन शिव मंदिर दुन‌िया में शनिवार को शिवरात्रि के मौके पर भक्तों की भीड़ उमड़ी। यह मंदिर रावण के पर‌िवार ने स्थाप‌ित क‌िया था।

बिसरख के शिव मंदिर में उमड़ी भक्तों की भीड़

नोएडा, 15 जुलाई (ग्रेटर नोएडा के बिसरख गांव स्थित प्राचीन शिव मंदिर दुन‌िया में
शनिवार को शिवरात्रि के मौके पर भक्तों की भीड़ उमड़ी। यह मंदिर रावण के पर‌िवार ने स्थाप‌ित


क‌िया था। रावण यहां रोज पूजा करता था। यहां अष्टभुजी शिवलिंग है। ऐसे में श्रावण मास में बड़ी


सख्यां में दूर-दूर से कांवड़िये यहां जलाभिषेक के लिए पहुंचते हैं। प्राचीन शिव मंदिर के महंत श्रीरामदास
ने बताया कि रावण का जन्म बिसरख गांव में हुआ था।


रावण के पिता विश्रवा मुनि के नाम पर ही गांव का नाम पड़ा है। गांव में रावण का भी मंदिर बना हुआ
है। यहां के लोग उसको विद्वान पंडित मानते हैं। उन्होंने बताया कि रावण के पिता विश्रवा मुनि ने


भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए बिसरख गांव में अष्टभुजा धारी शिवलिंग स्थापित कर मंदिर का
निर्माण किया था। पूर्व में यह क्षेत्र यमुना नदी के किनारे घने जंगल में आच्छादित था। विश्रवा मुनि ने


घने जंगल के कारण इसे अपना तप स्थान बनाया था। इसी मंदिर पर अराधना के बाद रावण का जन्म


हुआ था। गांव में अष्टभुजा धारी शिवलिंग अब भी स्थापित है। इस तरह का शिवलिंग आसपास किसी
मंदिर में नहीं है।


रामलीला का मंचन नहीं होता
मीडिया प्रभारी शेलेश मिश्रा ने बताया कि पुराणों में भी बिसरख गांव का जिक्र किया गया है। रावण के


गांव बिसरख में आज भी रामलीला का मंचन नहीं होता। साथ ही उसके पुतले का दहन भी नहीं किया
जाता। उन्होंने बताया कि कुछ साल पहले तक गांव में दशहरा के दिन मातम छाया रहता था, लेकिन


अब थोड़े हालात बदले हैं। युवाओं की सोच बदली है। हालांकि अभी रावण के पुतले का दहन नहीं किया


जाता है। यहां रावण की पूजा की जाती है। बिसरख गांव में आज भी खुदाई के दौरान शिवलिंग निकलती
हैं।


शिवलिंग की गहराई को जानना मुश्किल
तांत्रिक चंद्रास्वामी ने वर्ष 1984 में शिवलिंग की गहराई जानने के लिए खुदाई कराई थी। बीस फीट


खुदाई के बाद भी शिवलिंग का छोर नहीं मिला था। इस दौरान एक गुफा मिली थी। वह पास में बने
खंडहरों में जाकर निकली। खुदाई के दौरान चौबीस मुखी एक शंख निकला था। इसे चंद्रास्वामी अपने


साथ ले गए थे। चंद्रास्वामी ने कई बार यहां आकर पूजा की थी। इनके अलावा पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर


भी शिव मंदिर में आकर पूजा अर्चना किया करते थे। मान्यता है कि जो भी कोई भी शिवमंदिर में पूजा
अर्चना करता है, उसकी मनोकामना पूरी हो जाती है।


सावन महीने में मेले जैसा माहौल
प्राचीन शिव मंदिर में सावन महीने में मेले जैसा माहौल रहता है।

विभिन्न राज्य से लोग भगवान शिव
का जलाभिषेक करने पहुंचते है। मंदिर समिति के मीडिया प्रभारी ने बताया कि सावन के प्रत्येक सोमवार

सामूहिक रुद्राभिषेक किया जाता है। इसमें सबसे पहले सुबह चार बजे मंदिर के कपाट खोले जाते है,
इसके बाद भगवान का श्रृंगार कर मंगल आरती की जाती है। जिसके बाद भक्तों द्वारा सुबह 6 बजे से


श्रद्धालु भगवान शिव का जलाभिषेक करते है। वहीं शाम को चार बजे भजन-कीर्तन का आयोजन होता है
और शाम 5 बजे से सामूहिक रुपद्रभिषेक किया जाता है।